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॥श्री नारायणी चरित मानस॥
 
॥श्री राणी सत्यै नमः॥
 
श्री नारायणी चरित मानस
 
卐    ॐ    卐
 
-: चतुर्थ स्कन्ध :-

 

 

सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥
 
॥भाषा-टीका॥
 
नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी हो, कल्याण दायिनी शिवा हो, सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।
 
॥दोहा॥
 
नाथ हमें बतलाइये, कलि में सत की बात 
कौन सती ऐसी हुई, बनी जगत की मात॥१॥
 
॥चौपाई॥
 
सतयुग, द्वापर, त्रेता मांही। 
अगनित सती हुई जग मांही॥
कलियुग मांही सत की गाथा। 
पूछहुँ नाथ जोड़कर हाथा॥
कलियुग के सब लोग दुखारी। 
केहि विधि उतरें पार खरारी॥
कृष्ण कहे सुनु प्रिया हमारी। 
एक सती है नजर हमारी॥
कौरव पांडव युद्ध हुआ था। 
चक्रब्यूह भी रचा गया था॥
अर्जुन सुत अभिमन्यु प्यारा। 
जिसने कौरव दल संहारा॥
की बालक ने बहुत लड़ाई। 
वीरगति अभिमन्यु पाई॥
नाम उत्तरा प्रिय पत्नी थी। 
था संयोग गर्भवती भी थी॥
सती होने से रोक लिया था। 
उसी समय वरदान दिया था॥
महासती कलयुग की होगी। 
नहीं अगर तू अब सती होगी॥
वहीं उत्तरा जनमी आकर। 
तपोभूमि भारत में जाकर॥
गुरसामल घर जनम लिया है।
नारायणी शुभ नाम दिया है॥
अभिमन्यु ने जनम ले लिया। 
सुन्दर तनधन नाम दे दिया॥
प्रणय सूत्र में अब बन्धेंगे। 
सुखी जगत् के लोग करेंगे॥
रुकमणी बोली मैं देखूंगी। 
नाराणी का सत परखूँगी॥
भलेहि प्रिया कह कृपा निधाना। 
वेश जोगिया लगे बनाना॥
 
॥दोहा॥
 
जोगण रुकमण राधिका, रूप बनायो आय। 
जोगी रूप लिया श्याम ने, सत परखन को जाय॥२॥
 
॥चौपाई॥
 
अलख जगाई गुस्सामल घर। 
बोले हर हर बम शिव शंकर॥
पत्नी समेत आय सिर नावा। 
सुता बुला परणाम करावा॥
भले भाग साधू घर आये। 
बहुत प्रेम से भीतर लाये॥
चकित हुई नाराणी देखी। 
राधा रुकमण अति विशेषी॥
अति आदर पद कमल पखारे। 
ले चरणामृत भये सुखारे॥
मान सहित भोजन करवाया।
जल पिलाय आचमन कराया॥
राधा, रुकमण ओर निहारी। 
बोले चहुँ दिशि देखि खरारी॥
घर-घर में उत्सव है छाया। 
केहि कारण पुर गाँव सजाया॥
नाराणी का ब्याह रचाया। 
एहि कारण घर गाँव सजाया॥
गुरसामल बोले कर जोरी। 
एक विनती सुन लो प्रभु मोरी॥
 
॥दोहा॥
 
कन्या की रेखा पढ़ो, दो भविष्य बतलाय। 
सुखी रहे कन्या मेरी, ऐसा करो उपाय॥३॥
 
॥चौपाई॥
 
नाराणी का हाथ देख कर। 
भाग्य बतावो मन विचार कर॥
नाराणी को तुरत बुलाया। 
वाम हाथ उनको दिखलाया॥
हाथ देख बोले मुनि जावो। 
तनधन का भी टेवा लावो॥
कह मुनि सुनो उम्र तनधन की। 
अब बाकी है थोड़े दिन की॥
अब तुम बात हमारी मानी। 
दूजा वर खोजो नर ग्यानी॥
मुकलावा जिस दिन भी होगा। 
तनधन यमपुर गामी होगा॥
सुनि मुनि वचन पिता मुरझाये। 
माता ने भी होश गंवाये॥
तेहि समय नाराणी उठकर। 
बोली बचन हृदय को दृढ़ कर॥
जो कुछ भी भविष्य है मेरा।
फिर भी तनधन ही वर मेरा॥
नहीं दूसरा वर चाहूँगी। 
तन मन से तनधन ब्याहूँगी॥
जनम जनम का साथ हमारा। 
एहि तज दूसर नहिं भरतारा॥
राधा, रुकमण अति सकुचाई। 
मन ही मन अत्यंत शरमाई॥
हाथ जोड़ बोली नाराणी। 
सकल भांति मन में अनुमानी॥
 
॥दोहा॥
 
नाराणी पहचान गई, ये तो नन्द किशोर।
हाथ जोड़ बोली तुरत, सुनिये माखन चोर॥४॥
 
॥चौपाई॥
 
सतयुग, द्वापर में छल करके। 
भक्तों को छलते जी भरके॥
छले भगत त्रेता युग मांई। 
छलने की पर भूख न जाई॥
अब छल छोड़ दरश दो नाथा। 
हाथ जोड़ कर नाऊँ माथा॥
वृन्दावन माखन चोरी की। 
अब आदत छोड़ो चोरी की॥
मात पिता को करो सुखारी। 
यह प्रसंग भूलें असुरारी॥
राधा, रुकमण ओर निहारी। 
हाथ जोड़ आरती उतारी॥
लखि रुकमण बोले छलधारी। 
आज पकड़ गई चोरी हमारी॥
तुरत चतुर्भुज रूप बनाया। 
नाराणी को दरश दिखाया॥
चरण पकड़ बोली कर जोड़ी। 
भली सजी तीनों की जोड़ी॥
मात पिता अवसर अनुमानी। 
विनती करी जोड़ जुगपानी॥
आशीर्वाद देय विधि नाना। 
अंतर्ध्यान भये भगवाना॥
 
॥दोहा॥
 
यह चरित्र कर कृपा निधि, पहुँचे अपने धाम। 
माता मन में सोचती, क्या होगा परिणाम॥५॥
 
॥चौपाई॥
 
माता कहे पति से बाता। 
क्या होगा कुछ समझ न आता॥
दूजा वर खोजो तुम जाई। 
इसमें ही अब लगे भलाई॥
बार बार विनती कर जोरी। 
कहहुँ नाथ मानो अब मोरी॥
गुरसामल बोले नरग्यानी। 
धीरज धरो बात मेरी मानी॥
छोड़ो सब भगवान भरोसे। 
वहीं सभी को पाले, पोसे॥
अब यदि तोड़ूँ जाय सगाई। 
होगी जग में लोक हँसाई॥
टूट जाय कन्या की सगाई। 
कोई नहीं करे अपनाई॥
मान घटे अपनी बेटी का। 
लाभ नहीं कुछ इस हेटी का॥
बात मान मत रिस्ता तोड़ो। 
अपने टूटे दिल को जोड़ो॥
 
॥दोहा॥
 
बाल, नारि हठ, राज हठ, जग में है विख्यात।
जब तीनों हठ पर अड़ें, माने नाहीं बात॥६॥ 
 
मात उठी विकलाय कर, बोली वचन सक्रोध। 
आँखों से गंगा बहे, गला गया अवरोध॥७॥
 
(माता का हठ)
 
कंत हमारी बतियां मानों। 
कूवै मँ मत फैंको नाराणी, कंत॥
थे तो मरद हो करड़ी छाती। 
दुख पावै थारी नाराणी, कंत॥
नो दस मास गरभ में राखी। 
जद देखी सूरत नाराणी, कंत॥
नारी की थे पीड़ा के जाणो। 
क्यूँ जीतै जी मारो नाराणी, कंत॥
नाजां की पाली लाडो मेरी। 
नाम दुहागण होय नाराणी, कंत॥
ब्याह, शादी में कोई ना बुलावे। 
कुसूणी कहलाय नाराणी, कंत॥
कुवै मैं कूद समंदर कुदूँ। 
डूँगर सँ फैंकूँ नाराणी, कंत॥
जीते जी न तनधन ब्याहूँ। 
पीऊँ जहर पिलाऊँ नाराणी, कंत॥
बिलख बिलख कर होश गंवाया। 
'रमाकांत' मातानाराणी, कंत॥
 
॥दोहा॥
 
होश गंवाये मात ने, पड़ी धरण पर जाय। 
गुरसामल भये सोच बस, दुःख न हृदय समाय॥८॥
 
इधर बुलाया कृष्ण को, नाराणी सिर नाय। 
आरत देखा भक्त को, गरुड़ चढ़े प्रभु आय॥९॥
 
॥चौपाई॥
 
नाराणी बोली अकुलाई। 
अपने गुरु को शीश नवाई॥
यह क्या कर दिया दीनानाथा। 
बीच भँवर मत छोड़ो साथा॥
मात पिता की मती फिराई। 
जल्दी उनको करो सुखाई॥
पूर्व जन्म की बात बताओ। 
तनधन दास रहस्य बताओ॥
हो प्रसन्न बोले जदुराई। 
तुम अपनी माता पहिं जाई॥
तू जब जाकर समझावेगी। 
माता जल्द मान जावेगी॥
दे आशीष भये अन्तर्ध्याना। 
गुरु को सती किया परनामा॥
तुरत मात पहिं दौड़ी आई। 
आकर उनको होश कराई॥
जब पत्नी को होश आ गया। 
गुरसामल भी बाहर आ गया॥
गंग, जमुन आँखों से बहई। 
नाराणी को गले लगा लई॥
फूट फूट कर रोवण लागी। 
नाराणी तब कहने लागी॥
काहे अपयश लेवो माता। 
तनधन ही तेरा जामाता॥
 
॥दोहा॥
 
तनधन को छोई नहीं, चाहे कुछ भी होय।
जीवन, मरण, चिंता नहीं, काहे आँख मिगोय॥१०॥
 
माता से विनती (घूमर)
 
म्हारी तनधन से लौ लागी ये माय। 
दूजो वर नहि ब्याहूँगी॥
 
ए माँ......
 
म्हारो जनम-जनम को सागो ये माय। 
अब भी संग नहीं छोङूँगी॥
 
ए माँ......
 
सारो जग रूसै, रूसण दे ये माय। 
तनधन ही पति चाहूँगी॥
 
ए माँ......
 
चाहे छोटी उमर भरतारो ये माय। 
उण संग सुरगां जाऊँगी॥
 
ए माँ......
 
मैं तो कूद अगन मर ज्यास्यूँ ये माय। 
तनधन ने नहिं छोङूँगी॥
 
ए माँ......
 
मेरे मन में तनधन भायो ये माय। 
मैं भी जिद नहिं छोड़ूँगी॥
ए माँ......
 
॥दोहा॥
 
रहे सुहाग या ना रहे, चिंता नहीं तनेक। 
भारत की ललना बरे, जीवन में वर एक॥११॥
 
(गीत)
 
तनधन को लंज्यो। 
मेरी माता आज पहरादे ये॥
तनधन.......
 
फिर मात हरष कर बोली। 
तेरी अब सजवास्यूँ डोली॥
थारै मेंहन्दी हाथ रचास्यूँ। 
ए तनधन को लंज्यो॥
मत मेरो दूध लजाज्ये। 
तू अमर सुहागण बाजे॥
म्हारो हिवड़ो भर भर आवै ये। 
तनधन को लंज्यो॥
जा आशीर्वाद है मोरी। 
म्हारे चोपड़ै री रोली॥
यो 'रमाकांत' जस गावैजी। 
तनधन को लंज्यो॥
 
॥दोहा॥
 
माँ हरसाई चित्त मँ, हिवड़ै लई लगाय। 
जा, पति से कहने लगी, करो तैयारी जाय ॥१२॥
 
॥चौपाई॥
 
जहाँ तहाँ दूतन्ह दौड़ाये। 
सगे सम्बन्धी सभी बुलाये॥
स्वर्णाभूषण बनने लागे। 
दर्जी कपड़े सीने लागे॥
सकल भवन में रंग कराया। 
भांति-भांति का चित्र मंडाया॥
ताल मृदंग बाजने लागे।
शहनाई के सुर भी जागे॥
मुख्य द्वार तोरण बन्धाई। 
चौके चारूँ लिए पुराई॥
देश देश के गुनी बुलाये। 
भांति भांति पकवान बनाये॥
समाचार पुरवासी पाये। 
घर-घर मंगल बाज बधाये॥
एक आय दूजा फिरी जाये। 
इत उत खड़े लोग बतलाये॥
जनवासा सुन्दर बनवाया। 
सब साधन सब भांति सजाया॥
सुन्दर गद्दे लगे सुहाने। 
वस्त्र सफेद लगे बिछवाने॥
तकिये मसनद बहुत मंगाये। 
चारों ओर पिलंग बिछाये॥
हरिजन सुन्दर करी सफाई। 
सिक्का खूब जमीन भिगाई॥
तेलबान कन्या को चढ़ाया। 
विविध भाँति असनान कराया॥
 
(गीत तेलबान)
 
हल्दी को रंग सुरंग निपजे मालवेजी। 
कंचन बरणी केसरीजी॥
आवे बहुत सुगंध। 
निपजे मालवे जी॥
या हल्दी बिन्दायकजी मुलाई। 
बाई रिद्ध-सिद्ध र मन कोड॥
या हल्दी सब देव मुलाई। 
सगली देव्यां क मन कोड॥
या हल्दी मोजीरामजी मुलाई। 
बाई पाना क मन कोड॥
या हल्दी गुरसामलजी मुलाई। 
बाई मायड़ क मन कोड॥
 
॥दोहा॥
 
तेलबान की रस्म कर, मामो गोद उठाय।
ल्या बनड़ी बैठा दई, उपमा नहीं कहाय॥१३॥
 
॥चौपाई॥
 
भामिनि सुन्दर गीत सुनाये। 
चढ़ अटारि गणपती मनाये॥
जूँथ, जूँथ मिलि आई सखियाँ। 
बहुत प्रकार बनाये बतियां॥
बहुत भांति के मंगल गाकर। 
सखियां लगी सजाने आकर॥
लाल चुनरिया दुल्हन सोहे। 
रत्नहार मुनिजन मन मोहे॥
मोतियन की माला गल सोहे। 
कमर तागड़ी, चूड़ा मोहे॥
पांवों में पाजेब सुहाये। 
लाल मोचड़ी अति मन भाये॥
सब प्रकार कीन्हों सिंगारा। 
हाथ पाँव मेहन्दी रंग प्यारा॥
 
॥दोहा॥
 
एहि प्रकार श्रृंगार कर, सखियां च्यारूँ ओर।
'रमाकांत' जस गायसी, होकर प्रेम विभोर॥१४॥
 
उधर नगर हिसार में, घर-घर मंगलाचार। 
जालीराम घर छा रह्यो, उत्सव बड़ो अपार॥१५॥
 
॥चौपाई॥
 
पुरवासी दीवान बुलाये। 
मन हरषाय सभी चल आये॥
जल्द बरात सजावो जाई। 
अब बिलम्ब केहि कारण भाई॥
सुनी बात पुरजन हरषाये। 
पुलक वदन अपने घर आये॥
सबने निज निज साज सजाये। 
ले सामान जाली घर लाये॥
नाना भांति के रथ होते। 
तिन्ह मंह सुन्दर घोड़े जोते॥
सूत, मगध, बंदी, गुण गायक। 
चले जान चढि जो जेहि लायक॥
ऊँट, वृषभ, बेसर बहु भाँती। 
चले वस्तु भरि अगनित जाती॥
अनगिनती सेवक समुदाई। 
सुन्दर साज समान बनाई॥
भांति-भांति पालकी सजाई। 
हरषित चले विप्र समुदाई॥
चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारी। 
लिए आरती मंगल थारी॥
अति आनन्द न जाय बखाना। 
गावहिं गीत मनोहर नाना॥
 
(घोड़ी गीत)
 
घोड़ी मंगाई सजाकर, बनड़ै की माता।
पीतवरण की घोड़ी, छम छम आई।
गैणा सूँ खूब सजाई, बनड़ै की माता।
गहणां पहराय ऊपर, जीन बंधाई।
मखमल की गादी बिछाई, बनड़ै की माता।
सेहरा बंधा पेचै पर, किलंगी लगाई।
भाभ्यां न बेग बुलाई, बनड़ै की माता॥
भाभ्यो थे जल्दी आकर, काजल लगावो।
नेग घणां चुकवाया, बनड़ै की माता॥
बिन्दायकजी की पूजा कीन्हीं।
घोड़ी चढ्या सिरनाई, बनड़ै की माता॥
भूवा बनड़ै की आरती उतारी।
बहन करी लूण राई, बनड़ै की माता॥
सारी लुगायाँ वारी फेरी उतारी।
दूध पिलायो महतारी, बनड़ै की माता॥
"रमाकांत" थारी घोड़ी गाई।
सोनो खूब लुटायो, बनड़ै की माता॥
 
॥चौपाई॥
 
तनधन सुन्दर वेश सजाये। 
मनहु मदन सजकर महि आये॥
पीतवर्ण घोड़ी पर राजे। 
चाल देख खगराजहिं लाजे॥
कमलराम मित्रों के संगा। 
अति प्रसन्न असवार तुरंगा॥
जालीराम गणेश मनाई। 
गुरु समेत बैठे रथ जाई॥
 
॥दोहा॥
 
चोट नगारे पर पड़ी, भूसुर मन्त्र उचार।
कोकिल कंठा कामिनी, गा रही मंगलाचार॥१६॥
 
॥चौपाई॥
 
हरषि बरात कियो प्रस्थाना। 
होत सगुन मंगल विधि नाना॥
खर मिलि बाम, गाय मिलि दाँये। 
मंगल सगुन बरात बताये॥
बहुत विनोद बराती कीन्हे। 
अल्प समय डोकव आ लीन्हे॥
 
॥दोहा॥
 
सगुन सुमंगल देख के, गौरि, गणेश मनाय।
जनवासे के सामने, रुके बराती आय॥१७॥
 
॥चौपाई॥
 
कन्या पक्ष करे पहुनाई। 
मीठे मीठे वचन सुनाई॥
बसन विचित्र पाँवड़े परई। 
देखि धनद, धन मद परि हरई॥
सुन्दरतम दीन्हे जनवासा। 
जहँ सब कहुँ सब भाँति सुपासा॥
नाराणी बरात पुर जानी। 
तब कुछ निज माया प्रगटानी॥
सुमिरि हृदय सब सिद्धि बुलाई। 
करहुँ जाय सरबरा सुहाई॥
गुरसामल ठाड़े कर जोड़े। 
नाऊ सेवक इत उत दौड़े॥
जालीराम मिले हरषाई। 
आ समधी को गले लगाई॥
भांति-भांति के खाद्य मंगाये। 
दूध, आमरस भांग बंटाये॥
दूलह देख सकल सुख मानी। 
घर-घर नारी करे बखानी॥
कैसा सुंदर दुल्हा आया। 
ए सखी सुन सबके मन भाया॥
जनु ब्रह्मा निज हाथ संवारा। 
श्याम सलौना कैसा प्यारा॥
 
॥दोहा॥
 
एहि प्रकार बेला परम, गौ धूली गइ आय।
पाणिग्रहण की शुभ घड़ी, 'रमाकान्त' हरषाय॥१८॥
 
॥चौपाई॥
 
सजी बरात निशान बजाई। 
तनधन सिर सेहरा बंधाई॥
नाचत नटी बाज रहि भेरा। 
आ पहुँचे गुरसामल घेरा॥
तनधन ने घोड़ी पर चढ़कर। 
मारा तोरण आगे बढ़कर॥
सासू आरति थाल सजाये।
मंगल गीत लुगायां गाये॥
तोरण, कामण गीत सुहाये। 
कोकिल कंठ भामिनी गाये॥
 
(तोरण)
 
तोरण आया राइवर थर-हर कांप्या राज। 
पूछो सिरदार बनी न कामण कूँण कर्या छ राज। 
म्हे कांई जाणा म्हारा जोशी कामण गारा राज। 
जोश्यां रो नेग चुकास्यां कामण ढीला छोड़ो राज। 
म्हे कांई जाणा म्हारा नाई कामण गारा राज। 
नायां रो नेग चुकास्यां कामण ढीला छोड़ो राज।
म्हे कांई जाणा म्हारी सखियाँ कामण गारी राज। 
सखियाँ रो नेग चुकास्यां कामण ढीला छोड़ो राज।
 
(कामण)
 
बनो कांकड़ आय बिराज्यो जी रस कामणिया। 
बनो तोरण आय बिराज्यो जी रस कामणिया।
बनो फेरां आय बिराज्यो जी रस कामणिया। 
बनो थापां आय बिराज्यो जी रस कामणिया।
बनो महलां आय बिराज्यो जी रस कामणिया।
 
॥चौपाई॥
 
नाराणी बहुत हरषाई। 
सुंदर कर जयमाल सुहाई॥
दुलहन ने मन में शर्माकर। 
वरमाला पहनाई आकर॥
सुंदर गजरा देख सुखारी। 
तनधन नाराणी गल डारी॥
मोद विनोद होत बहु भांती। 
आनंद मंगल कही न जाती॥
 
॥दोहा॥
 
गौरीसुत शारद मना, गुरु को शीश नवाय।
तनधन हरषित आ गये, बैठे मंडप जाय॥१९॥
 
॥चौपाई॥
 
प्रथम गजानन नवग्रह पूजा। 
गुरसामल ब्राह्मण पदपूजा॥
पूजे सकल देव सिर नाई। 
दूलह से पूजा करवाई॥
सकल भांति श्रृंगार बनावा। 
सखियां गाये गीत बधावा॥
नाराणी मन में अति लाजी। 
दाहिने तनधन भाग बिराजी॥
बरनि न जाय मनोहर जोरी। 
दरस लालसा सकुच न थोरी॥
सम्वत् तेरह सौ इक्कावन। 
नवमी मंगसिर सुदी सुहावन॥
गौ-धूली का समय विचारी। 
अति सुपास सब भाँति सुखारी॥
पाणी ग्रहण समय शुभ जानी। 
कुल गुरु की आज्ञा अनुमानी॥
गुरसामल ने अति हरषाई। 
दे दिया कन्या दान सुहाई॥
सकल गांव की ब्याही, जाई। 
दान दियो श्रद्धा अनुसाई॥
स्वस्ति वचन भूदेव उचारे। 
होन लगे फेरे सुखकारे॥
 
(गीत)
 
पहलो फेरो नाराणी लीन्यो। 
तो बाई दादोजी न॥
प्यारी हो राम। 
रुपिया खूब लुटाया जी राज॥
दूजो फेरो नाराणी लीन्यो। 
तो बाई बापूजी न॥
प्यारी हो राम। 
अनधन खूब लुटाया जी॥
तीजो फेरो नाराणी लीन्यो। 
तो नाराणी मायड़ न॥
प्यारी हो राम। 
सोनो खूब बंटायो जी॥
चौथो फेरो बनड़ो लीन्यो। 
तो बाई हुई परायी॥ हो राम। 
रमाकांत हरषायोजी॥
 
॥चौपाई॥
 
फेरे पूर्ण हुए सुख कारी। 
मंगलमय स्वर भेर उचारी॥
सातों वचन मांग मन राजी। 
दुलहन तनधन वाम विराजी॥
सजि आरती अनेक प्रकारा। 
भूसुर मंगल वेद उचारा॥
पूछि विप्र, गुरु, वृद्ध, बड़ाई। 
वर दुलहिन से नेग कराई॥
तनधन माथे सेंदुर देही। 
वर्णन करे सो है कवि केही॥
 
॥दोहा॥
 
देवी देवता पूज कर, थापा धोक दिवाय।
सखियां बोली बीन्द न, देवो श्लोक सुनाय॥२०॥
 
एक श्लोक पर हीरा देस्यां, दूजे माणक मोती। 
तीजै चौथे सोनो देस्यां, मोजीराम की पोती॥२१॥
 
(श्लोक १)
 
गुरसामलजी डोकवै का, जालीराम हिसारो। 
तनधन दुल्हो आयो सोवणो, सासूजी को प्यारो॥
 
(२)
 
साला हेली सारी लुगायां, सारी छोर्या साली। 
नाराणी म्हारै घर की शोभा, ज्यूँ चंदा उजियाली॥
 
(३)
 
सुसरो म्हारो इन्दर राजा, सासूजी इन्दराणी। 
बेटी जाई घणी सोवणी, नाम धर्यो नाराणी॥
 
(४)
 
तनधन बनड़ो श्लोक सुनाया, साल्यां नेग चुकाया।
दादीजी की कृपा हुई तो, रमाकांत चित आया॥
 
॥दोहा॥
 
जूवे का दस्तूर कर, देवी देव पुजाय। 
कंवर कलेवा हो गया, सजन गोठ को जाय॥२२॥ 
 
॥चौपाई॥
 
गुरसामल लिए बोलि बराती। 
जीमणवार बैठि बहु पांती॥
बनी अनेक विचित्र मिठाई। 
खीर, छरस, नमकीन सुहाई॥
अति प्रमोद जीमें बाराती। 
ताना कोकिल कंठा गाती॥
 
(सीठणा)
 
म्हारै ये पीछोकड़ गीता ए बचत है 
जे कोई सुणबा आवैजी हरीको। 
सुणबातो आवै म्हारै बंशीधर लूंटी।
सुण सुण ग्यान बढ़ावैजी हरी को॥
सुणबातो आवै म्हारै जालीराम लूंटी।
सुण सुण ग्यान बढ़ावैजी हरी को॥
सुणबातो आवै म्हारै जुग्गीरामजी लूंटी।
सुण सुण ग्यान बढ़ावै जी हरी को॥
सुणबातो आवै म्हारै कमलाराम मायड़।
सुण सुण ग्यान बढ़ावै जी हरी को॥
 
॥दोहा॥
 
सांख जलेबी देयकर, गुरसामल हरषाय।
सत पकवानी जीमकर, जालीराम सुख पाय॥२३॥
 
(सीठणा)
 
मैदा को सीरो करूँ, पूड़ी करूँ पचास। 
पांचूँ बाँधू आंगली, छठो बाँधू गास॥ 
मूरख होतो जीमियो, नहीं खोलो म्हारो गास॥
जालीराम के घर सूँ आया, गुरसामल के पास।
सगा जिमाई सात मिठाई, छूट्या म्हारा गास॥
 
 
बंशीधरजी सम्हल कर बैठियो, छात परसूँ लाडू आवै गड़गड़ गम, डरपो मत सगीजी न लेजास्यां डरपो मत॥
 
 
जालीरामजी सम्हल कर बैठियो, छात परसूँ लाडू आवै गड़गड़ गम, डरपो मत......
 
 
जुग्गीरामजी सम्हल कर बैठियो, छात परसूँ लाडू आवै गड़गम गम, डरपो मत......
 
॥चौपाई॥
 
मन प्रसन्न जीमें बाराती। 
मोद प्रमोद कही नहिं जाती॥
करि जीमण आचमन कराया। 
मीठा बीड़ा पान मंगाया॥
 
॥दोहा॥
 
सजन गोठ एहि भांति कर, जीमणवार सुहान।
गुरसामल करने लगे, पहरावणी महान॥२४॥
 
॥चौपाई॥
 
जालीराम करी पहराई। 
मधुर गीत धुनि अति सुहाई॥
 
(गीत पहरावणी)
 
आवो आवो मोजीरामजी रा पूत 
गुरसामल करो पहरावणी
आवो आवो गुरसामलजी रा पूत 
गीगराज करो पहरावणी
 
॥चौपाई॥
 
दायज दियो अनेक प्रकारा। 
रत्न जड़ित आभूषण हारा॥
वस्त्र कई रेशम, कपास के। 
दरी गलीचे कई प्रकार के॥
हाथी, घोडा, ऊँट, रथारी। 
दीन्हें बहुत प्रकार संवारी॥
बहु प्रकार मेवा मिष्ठाना। 
दिये बहुत भांति पकवाना॥
सकल बराती लिये बुलाई। 
आदर सहित करी पहराई॥
नाना वस्तु बरातिन्ह पाई। 
जान झुँवारी हुई सुहाई॥
और सकल चाकर थे जेते। 
सनमाने समधी सम चेते॥
स्वर्ण, वस्त्र दिये अति सुहाने। 
एहि प्रकार दासन्ह सनमाने॥
 
॥दोहा॥
 
एहि विधि करि पहरावणी, बरनी कैसे जाय।
जगदम्बा पहरावणी, शारद सके न गाय॥२५॥
 
॥चौपाई॥
 
रथ अनेक सुंदर सजवाये। 
दासी दास तुरत बैठाये॥
स्वर्ण जड़ित पालकी मंगाई। 
नाराणी के लिये सजाई॥
विदा गीत गाये नर नारी। 
दे दे सुंदर सीख सुखारी॥
अपने घर जा सुता प्रवीणा। 
पति के अनुशासन में रहना॥
सास, ससुर की सेवा करना। 
नारी धर्म निभाते रहना॥
देवर, ननद और देवरानी। 
सबको रखना हिए लगानी॥
सुचि सेवक, दासी अरु दासा। 
सब के मन तुम करो निवासा॥
गौ, ब्राह्मण और संत जनों की। 
सेवा करना वृद्ध जनों की॥
जब चलने की बेला आई। 
विकल भये सब लोग लुगाई॥
 
॥दोहा॥
 
गैया आई दौड़ कर, बचपन से थी साथ।
आँखों में आँसू बहे, चाटण लागी हाथ॥२६॥ 
 
॥चौपाई॥
 
विकल होय के गले लगाई। 
भाँ-भाँ कर गाई रम्भाई॥
हांकण लागे लोग लुगाई। 
और जोर गाई रम्भाई॥
माता जब समझावन आई। 
माँ का मुख चाटण लगि गाई॥
मात चरण चाटण लगि गैया। 
जिमि कह तनिक रहने दे मैया॥
रखवाले को तुरत बुलाया। 
मुश्किल से नोहरे पहुँचाया॥
दौड़-दौड़ सखियाँ आती थी।
विलख गले से लग जाती थी॥
सकल जगह करुणा रस फूटा। 
रोये बिना न कोई छूटा॥
माता बोली गले लगाकर। 
मुझे चली किसको सम्भलाकर॥
विलख मात के गल लपटानी। 
रो रो कर हिचकी बन्धानी॥
ममता मय सिर हाथ फिराई। 
बोली महतारी समझाई॥
अमर सुहागण लाडो मेरी। 
पति चरणों में ही गति तेरी॥
सुंदर सीख यही है बेटी। 
कभी न करना पति से हेटी॥
पिता ससुर दोउ कुल चमकाना। 
मत लाडो मेरी कोख लजाना॥
 
॥दोहा॥
 
दुलहन बोली मात को। छाती से लिपटाय।
गुड़िया मेरे साथ की। रखज्यो मेरी नांय॥२७॥
 
आवत देखा स्वामि को। मात गई विकलाय।
आँसू तो झर झर बहे। वचन निकल नहिं पाय॥२७क॥
 
॥चौपाई॥
 
नाराणी चाली सासरिये। 
थे धीर बंधावो जाय॥
थारी बेटी चाली सासरिये। 
थे धीर बंधावो जाय॥
लाडेसर चाली सासरिये। 
थे धीर बंधावो जाय॥ 
जद कद भी मैं भई अणमणी। 
आ गोदी में बैठ गई॥
मीठी मीठी बाताँ सुण कर। 
सारा दुखड़ा भूल गई॥
गोदी मँ कुण बैठेगो अब। 
समझादे क्यूँ ना आय॥
प्रात समय उठ कीर्तन कर। 
मेरो सारो काम कराती जी॥
रामायण को पाठ कदे तो। 
वेद पुराण सुणाती जी॥
कुण गीता ज्ञान सुणासी ये। 
समझादे क्यूँ ना आय॥
गायां की कुण सेवा करसी। 
बाँटो कुण खुवासी ये॥
नाराणी तेरे बिना गोमती। 
कैयां चारो खासी ये॥
तेरी गंगा झुर झुर रोवै। 
धीर बन्धादे क्यूँ ना आय॥
सूरज देव थे कमती तपज्यो। 
तावड़ियो नहिं लग ज्यावै॥
कूँपलसी कोमल मेरी लाडो। 
ताप लग्यां कुम्हला ज्यावै॥
सावण ज्यूँ बादल छायां रखज्यो। 
थे बेटी पर आय॥
 
॥दोहा॥
 
गुरसामल आये तभी, हिये लिया लिपटाय। 
धीरवान भी रो पड़े, हिचकी गई बंधाय॥२८॥
 
॥चौपाई॥
 
धरि धीरज बोले विकलाई। 
बेटी लेना सदा बड़ाई॥
बहु समझा पुनि गले लगाई। 
नाराणी पालकी चढ़ाई॥
माता ने आशीष सुनाई। 
सदा सुहागिन तूँ मेरी जाई॥
आशीर्वाद दीन्ह सब जावो। 
फलो पूत दूध में न्हावो॥
विकल बनाय सकल नर नारी। 
नाराणी ससुराल सिधारी॥ 
तनधन आय सास सिर नावा। 
विदा होन हित वचन सुनावा॥
माता बोली अति विकला कर। 
कोटि-कोटि आशीष सुनाकर॥
आशीर्वाद यही है मोरी। 
जीवो सुत तुम बरस करोरी॥
पुनि गुरसामल चरण पकड़कर। 
ली आशीष बहुत जी भरकर॥
 
॥दोहा॥
 
पास पड़ोस की भाभियां, आई झुंड बनाय। 
ले चाल्या म्हारी नणद न, रखज्यो हिये लगाय॥२९॥
 
(नणदोई)
 
प्यारा लागोजी नणदोई म्हानै प्यारा लागोजी। 
ओजि बाई नाराणी रा भरतार, 
नणदोई...॥
ओजि म्हारी राजकँवर बाई रा श्याम।
नणदोई...
पेचो सोवैजी नणदोई थारे पेचो सोवैजी।
ओजि थारी किलंग्या की जगा ज्योत।
नणदोई म्हाने.....
बाइजी सोवैजी नणदोई थारे बाइजी सोवैजी।
ओजि थारी जोड़ी की जगा ज्योत।
नणदोई म्हानै......
ओजि म्हारा राजकँवर बाई रा श्याम।
नणदोई म्हानै......
 
॥दोहा॥
 
गुरसामल आये तुरत, समधी जी के पास।
हाथ जोड़ अति दीन हो, बोले वचन सुपास॥३०॥
 
॥चौपाई॥
 
गुरसामल दोउ हाथ पसारी। 
केहि विधि करूँ प्रशंसा थारी॥
बहु सनमान दास को दीन्हा। 
यहाँ पधार अनुग्रह कीन्हा॥
क्षमा करहुँ अपराध हमारे। 
भूल चूक हमने कर डारे॥
नाराणी है सुता तुम्हारी। 
रखना प्राणों से भी प्यारी॥
जालीराम बोले मुसुकाई। 
दीन्ही सब विधि आप बड़ाई॥
 
॥दोहा॥
 
जालीराम बोले तभी, कमलाराम बुलाय।
खूब उछालो रोकड़ा, देवो त्याग चुकाय॥३१॥
 
॥चौपाई॥
 
गुरसामल को गले लगाई। 
बैठे रथ गौरीसुत ध्याई॥
 
॥दोहा॥
 
रामरमी दोनूँ करी, नैन नीर की धार।
गुरसामल घर को चले, जालीराम हिसार॥३२॥
 
॥चौपाई॥
 
कर बहु बार अनेक बड़ाई। 
समधी सब बरात समुदाई॥
ढोल नगारे, शंख बजाकर। 
सब विधि सबको शीश नवाकर॥
गुरसामल को अति समझाकर। 
चली बरात गणेश मनाकर॥
 
॥दोहा॥
 
ले दुलहन को चल दिये, तनधन अति हरषाय।
'रमाकांत' विनती करे, देव सुमन बरसाय॥३३॥
 
(ओल्यूँ)
 
टेक॰ ओजी ओ गोरीरा लसकरिया 
ओल्यूँडी लगायर थे तो
चाल्या जी बनड़ा॥
 
थारी तो ओल्यूँ बना म्हे करां 
म्हारी तो करियन कोईजी बनड़ा॥
 
थारी तो ओल्यूँ बनी म्हे करां 
म्हारी तो करे म्हारी माय जी बनड़ी॥
 
चढ़ो तो चढ़ावो बना के करो 
क्यूँ तरसावो बालक जीव जी बनड़ा॥
 
नाराणी पग घाल्यो पागड़े 
डब-डब भर आया नैण जी बनड़ा॥
 
आँसू तो पूँछ्या पीले पेचसूँ 
लेई तो हिवड़े लगाय जी बनड़ा॥
 
(बधावा)
 
पहल बधावै ए सइयो मोरी म्हे गया राज।
गया म्हारै बाबा जी री पोल मोरी सईयो ए। 
चढ़ती बाई न ए सूण भला होया राज।
गया म्हारे बीरांजीरी पोल मोरी सइयो ए।
चढ़ती बाई न ए सूण भला होया राज।
 
॥दोहा॥
 
बिदा कराय बरात को, आये घर के मांय।
बिना सुता के भवन में, कुछ भी नहीं सुहाय॥३४॥
 
बीच बीच बर वास कर, डोली लिए कहार।
ले दुलहन वर आ गये, अपने नगर हिसार॥३५॥
 
॥चौपाई॥
 
अति आनंद घर-घर में छायो। 
तनधन नाराणी ब्याह ल्यायो॥
मंगलमय शुभ अवसरु जानी। 
डोली पहुँची द्वारे आनी॥
सासू ने भर गोद उतारी। 
सजि मंगल आरती उतारी॥
ननदी पाई बार रुकाई। 
कैसी अच्छी भाभी आई॥
पारवती, लक्ष्मी, ब्रह्माणी। 
जैसे उतर मही पर आनी॥
वर दुलहन की नजर उतारी। 
अंदर ले गई ननदी प्यारी॥
भाँति माँति के मंगल गाना। 
और बहुत से नेग बयाना॥
देवी, खेतरपाल पुजाये। 
सोट, सोटकी खेल रचाये॥
नित नूतन आनंद बधाई। 
घी, गुड़ मांही हाथ घलाई॥
 
॥दोहा॥
 
पग पकड़ानी रसम कर, थाल सुहाग सजाय।
भेंट मिली मन भावती, 'रमाकांत' हरषाय॥३६॥
 
ब्राह्मण, नाई, भाटवर, सबको किया प्रसन्न।
जालीराम लुटा रहे, स्वर्ण, वस्त्र अरु अन्न॥३७॥
 
॥चौपाई॥
 
सास सुसर ने अति सुख पाया।
सासू का चित अति हरषाया॥
नाराणी भी अति सुख पाई। 
सास चरण में चित्त लगाई॥
नित नव मंगल मोद बधाई। 
आ पहुँचा लणिहारा नाई॥
बहुत प्रसन्न करी पहुनाई। 
दी नाई को बहुत बड़ाई॥
पूज थली गजबदन मनाई। 
दुलहन सादर करी विदाई॥
गांव डोकवा पहुँची आई। 
मात पिता ने गले लगाई॥
सास ससुर की करी बड़ाई। 
सुनि माता मन में हरषाई॥
सखियां गले मिली सब आकर। 
विदा किया सबको समझाकर॥
पति चरणों में चित्त लगाया। 
मात पिता का मन हरषाया॥
 
॥दोहा॥
 
यह विवाह संवाद जो, नित्य पढ़े चितलाय। 
"रमाकांत" निश्चय कहे, मंगल मोद बढ़ाय॥३८॥